Wednesday 18 May 2022
कुछ लिखूं तुम पर
चाहती तो हूं कि
कुछ लिखूं तुम पर
मगर रुक जाती हूं
ऐसा नही है
कि कुछ है नही
लिखने के लिए,
शुरू करूं तो शायद....
मेरी ये उम्र कम पड़ जाए
मगर फिर सोचती हूं
क्या सही होगा ... तुम्हें
शब्दों की सीमाओं में बांधना..
या कोई उपमा देकर
तुम्हारे विस्तार को
किसी एक ही अर्थ में
सीमित करना,
तुम्हें चांद भी नहीं कह सकती
क्योंकि उसको भी एक दिन
क्षय होना होता है,
या सागर की अथाह जलराशि...
मगर एक किनारा तो उसका भी होता है,
तुम्हें तो इंद्रधनुष के रंग भी
नहीं कहना चाहती,
जिसे बारिश का इंतजार रहे,
ना ही जगमगाता सितारा
कि कोई छोटा सा बादल आए
और छिपा ले अपनी ओट में,
तुम तो वो आकाश हो
जो अनन्त है
जिसकी कोई सीमा नहीं
हमेशा से सत्य, शाश्वत, अक्षय।
तो बेहतर है कि मैं
कुछ भी ना लिखूं
तुम्हारे बारे में...
जब लिखूं तो बस तुम्हें लिखूं
क्योंकि तुम सिर्फ तुम हो
जिसे बस मैं जानती हूं
और कोई नहीं।
"लीना गहलौत"
Thursday 27 May 2021
"ख़ास कोना"
"कोना",
यूं तो हर कोई
वाकिफ है इस जगह से...
किसी के लिए
ये एक साधारण सी
जगह होती है, तो ....
किसी के लिए बहुत ख़ास
पर... कभी गौर किया है ?
कई बार खाली ही रह जाता है,
वो एक कोना...
किसी ख़ास,
अनमोल,
और ख़ूबसूरत
चीज के इंतज़ार में,
क्योंकि......
ऐसा वैसा कुछ भी
काबिल नहीं होता,
उस ख़ास जगह के,
मगर एक दिन,
अचानक...
आपको अहसास होता है
पूर्णता का....
कोई नायाब सी चीज़
या एक प्यारा सा "नाम"
हमेशा के लिए...
भर देते हैं उस खालीपन को,
भले ही ये लम्हा
कई दशकों के बाद आए
या, एक लम्बी उम्र गुजरने के बाद
मगर आता ज़रूर है....
और फिर ....
वो "ख़ास कोना"
दुनिया की सबसे बेहतरीन
जगह बन जाता है...
वो "ख़ास कोना"
चाहे घर का हो या
"दिल का" ।
(लीना गहलौत)
Tuesday 6 April 2021
हरी बिंदी
"हरी बिंदी"
हरी बिंदी |
जब कहीं मीलों दूर
कभी खोलकर बैठे होते हो
तुम अपनी एक खिड़की
और इत्तेफ़ाक से मैं भी
खोलती हूं तब ही
अपनी खिड़की...तब
तुम्हारी मुस्कुराती हुई
तस्वीर के पास
एक कोने में
छोटी सी 'हरी बिंदी'
रोक देती है जैसे वक़्त को,
और मेरी आंखें
बस ठहर जाती हैं
उस बिंदु पर
सब कुछ भुलाकर कि...
एक विस्तृत दुनिया है
खिड़की के उस पार
देखने को
मगर
मेरी दुनिया तो सिमट जाती है
उस 'हरी बिंदी' के इर्द गिर्द,
बिना कुछ कहे सुने
कितनी ही बातें कर लेती हूं तुमसे
और ना जाने कितने ही
शिकवे शिकायतें भी...
बिना मिले ही
मुलाकात का अहसास करा देती है
वो एक छोटी सी "हरी बिंदी"।
Monday 5 April 2021
बचपन
"बचपन"
मन के एक कोने में आज भी
मैंने अपना बचपन छुपा रखा है
वक़्त बेवक्त जी लेती हूं उसे
थोड़ा सा.....
माना कि ये इतना आसान नही होता
पर कई बार परे कर देती हूं
खुद के ज़िम्मेदार होने का अहम
क्योंकि, मुझे प्यार है ख़ुद से भी
और अपने उस बचपन से भी
जब मेरी मासूम शरारतें
मेरी खिलखिलाती हंसी
मुस्कान बनकर तैर जाती थी
मेरे अपनों के चेहरों पर,
मै अब भी किसी बात पर
हंस देती हूं खिलखिलाकर
या गाने लगती हूं
अपनी पसंद का कोई गीत,
मुझे आज भी अच्छा लगता है
आसमान में उड़ते जहाज़ को देखना,
और ट्रेन की आवाज़ आज भी
बरबस खीच लेती है मेरी आंखों को
अपनी ओर,
बारिश में कागज़ की नाव
अभी भी तैराती हूं अपने बच्चे के साथ
और तोता मैना के साथ
हाथी घोड़े भी उड़ा देती हूं,
कभी कभी थोड़ी देर बाद ही
बच्चों की तरह
भुला देती हूं वो हर कड़वी बात
जो मेरे रिश्तों में
दरार बन जाए,
मै जी लेती हूं अपना बचपन
क्योंकि ये मुझे ऊर्जा देता है
जिंदगी की जद्दोजहद से उबरने की
ये मुझे ऊर्जा देता है
अपनी जिम्मेदारियों को
पूरा करने की,
ये मुझे ऊर्जा देता है
अपनों के बीच आती
दूरियों को दूर करने की,
और इन सबसे भी ज्यादा
ये मुझे ऊर्जा देता है
सांसों को ज़िंदगी में बदलने की।
(लीना गहलौत)
Thursday 4 March 2021
वो खास जो रूह को सुकून दे जाता है।
निगाहों को कुछ पसंद आना
या कुछ
दिल में बस जाना
बड़ी आम सी बात हैं
खास तो बस "वो" है...
जो रूह को सुकून दे।
और वो "खास"
जो किसी नाम के
बंधन से मुक्त हो,
जो मोहताज ना हो
किसी रिश्ते का, या
जहां "उम्र".. मात्र
एक अंक से ज्यादा
और कुछ ना हो,
जहां दूरी या पास होना
कोई मायने ना रक्खे,
और शब्द भी मौन हो जाएं
उसे अभिव्यक्त करने में,
जो पवित्र इतना "ज्यों'...
अांगन में लगी तुलसी,
इतना शीतल जैसे
पूनम का चांद,
वो मोह ले तो ऐसे...मानो
संगीत का कोई मधुर राग
या महके पुष्प का पराग,
कोई खिलखिलाती हंसी
या कोई दिलकश आवाज़,
किसी भी रूप में
मगर वो "खास"
होता ज़रूर है
हम सबके पास,
वो "खास" जो
जीवन के झंझावातों से
जूझने की हिम्मत देता है,
वो "खास"
जिसका खयाल भी
उदास चेहरे पर
मुस्कान ले आता है
वो "खास" जो
"रूह" को सुकून दे जाता है।